
रामायण में रावण का किरदार निभाने वाले अभिनेता अरविंद त्रिवेदी अब 82 साल के हो चुके हैं। लेकिन रामायण के उस दौर को याद करते हैं तो बहुत कुछ खुलकर सामने आता है। रामायण के दोबारा ट्रेंड में आने से एक बार फिर राम और रावण यानी अरुण गोविल और अरविंद त्रिवेदी चर्चा में है। बीबीसी को दिए इंटरव्यू में अरविंद त्रिवेदी ने इस बात का खुलासा किया है कि वह शूटिंग के वक्त व्रत रखा करते थे। यानी जब तक शूट खत्म नहीं होता था वह अन्न का त्याग किए रहते थे।
इसी इंटरव्यू में अरविंद त्रिवेदी के नातिन ने जो बताया वह काफी रोचक है। उन्होंने बताया कि रावण का रोल करना अरविंद त्रिवेदी के लिए काफी मुश्किल भरा था। अरविंद त्रिवेदी से रावण बनने में उन्हें कम से कम 5 घंटे लगते। रावण के लिए उन्हें काफी भारी कॉस्ट्यूम पहनने पड़ते थे जिसमें लगभग 10 किलो का तो सिर्फ मुकुट होता था। मुकुट के अलावा शरीर पर लदे आभूषणों का वजन भी कुछ कम नहीं होते थे।
नातिन के मुताबिक अरविंद त्रिवेदी शूटिंग के दिनों लंबी पूजा किया करते थे। वह राम के काफी बड़े भक्त हैं यही कारण हैं कि जब भी शूटिंग पर जाते थे तो उपवास रखकर जाते थे। और शूटिंग पूरी होने और पूरा मेकअप निकल जाने के बाद ही कुछ खाया-पिया करते थे। यही नहीं राम के लिए अपशब्द बोलने को लेकर भी उनसे माफी मांगते थे कि मैं आपको कुछ अबशब्द बोलने जा रहा हूं लेकिन ये सिर्फ किरदार के लिए ही है।
400 लोग आए थे रावण का ऑडिशन देने
रावण का किरदार निभाने के लिए लगभग 400 लोग आए थे। अरविंद त्रिवेदी भी उस ऑडिशन में पहुंचे थे लेकिन रावण के किरदार के लिए नहीं बल्कि केवट का रोल निभाना चाहते थे। क्योंकि उस वक्त रावण के रोल के लिए सबकी पसंद दिग्गज अभिनेता अमरीश पूरी थे। खुद अरुण गोविल ने भी इस बात को स्वीकार किया कि रावण के रोल के लिए अमरीश पूरी के नाम पर उन्होंने भी हामी भरी थी। खैर..
गुजरात से चलकर केवट के लिए ऑडिशन देने आए अरविंद त्रिवेदी जब जाने लगे तो उनके बॉडी लैंग्वेज को देख रामानंद सागर ने तुरंत उन्हें रावण के लिए कास्ट कर लिया। उन्होंने तब कहा था कि मुझे मेरा रावण मिल गया।
कौन हैं रावण का किरदार करने वाले अरविंद त्रिवेदी
अरविंद त्रिवेदी मूल रूप से मध्य प्रदेश के शहर इंदौर शहर से ताल्लुक रखते हैं। रावण का किरदार करने के बाद उनकी किस्मत पलटी और लगभग 250 से भी ज्यादा गुजराती फिल्मों में काम किया। रामायण के ऑडिशन के दौरान वह गुजरात रहा करते थे और वहां के एक थिएटर से जुड़े थे। रामायण के बाद अरविंद राजनीति में भी उतरे थे और यहां पर उन्होंने काफी सफलता हासिल की थी।