
लॉकडाउन में कई जिंदगियां बंद पड़ गई हैं। मध्मवर्ग कैसे भी गुजारा कर रहा है लेकिन मजदूर और गरीब अपनी बेबसी के साथ जी रहे हैं। ऐसी ही एक बेबसी ने पत्नी को पति से मिलने नहीं दिया। और जब मरा तो उसका अंतिम संस्कार भी नहीं कर पाई।
दरअसल गोरखपुर के रहने वाले सुनील (37) दिल्ली में मजदूरी करते थे। अमर उजाला के मुताबिक सुनील को चेचक हो गया था। लॉकडाउन की वजह से वह घर नहीं जा पाया और इलाज के लिए इस अस्पताल से उस अस्पताल भटकता रहा। 4 बच्चें और पत्नी को गांव में छोड़ सुनील की देखभाल करने वाला यहां कोई नहीं था। 11 अप्रैल को उसकी तबीयत ज्यादा बिगड़ी तो आस-पास के लोगों ने पुलिस को फोन किया। पुलिस उसे बाड़ा हिंदूराव अस्पताल में भर्ती करा दिया, लेकिन उसे तीन और अस्पतालों में रेफर कर दिया गया। आखिर में शख्स ने दिल्ली के सफदरजंग अस्पताल में 14 अप्रैल को दम तोड़ दिया। इधर बीमारी के बीच पत्नी फोन करती रही। उसे क्या पता कि उसका पति उससे चंद दिनों बाद बहुत दूर चला जाएगा। पत्नी को खबर उसकी मौत की मिली। पत्नी बिलख पड़ी।
लॉकडाउन की मजबूरी में एक बेबस पत्नी पति के पास नहीं जा पाई। पुलिस ने उसे यहां (दिल्ली) से लाश ले जाने के लिए कहा। लेकिन दो जून की रोटी के लिए भी मोहताज पत्नी के पास इतने पैसे भी नहीं कि वह लाश दिल्ली से ले आ सके। उपर से लॉकडाउन की मजबूरी।
सुनील की पत्नी ग्राम प्रधान से लेकर कई लोगों से संपर्क किया लेकिन कुछ भी काम नहीं आया। एक हारी हुई लाचार पत्नी(पूनम) ने तहसीलदार से कह दिल्ली पुलिस को संदेश भिजवा दिया कि वे उसका अंतिम संस्कार दिल्ली में ही कर दें। और हो सके तो उसकी अस्थियां उसके गांव भिजवा दे। इधर पत्नी गांव में पति की लाश की जगह बेटे से उसके पुतले का अंतिम संस्कार कर दिया….
मृत व्यक्ति की चार बेटियां और एक साल का बेटा है। बड़ी बेटी की उम्र 10 साल है। गांव में ना कोई जमीन है ना ही बैंक में पैसे। पूरा परिवार एक झोपड़ी में गुजर बसर करता है।