क्या श्राद्ध सिर्फ पितृपक्ष में ही हो सकता है? लोगों के मन में एक सवाल भी हमेशा रहता है कि क्या श्राद्ध कर्म हम सिर्फ पितृपक्ष में ही कर सकते हैं या किसी और दिनों में भी इसको किया जा सकता है।
श्राद्धकर्ता को श्राद्ध वाले दिन किसी से दान या भेंट स्वीकार नहीं करना चाहिए।
Pitru Paksha 2021: पितृ पक्ष जिसे श्राद्ध (Pitri Paksha tithi 2021) भी कहा जाता है, का हिंदू धर्म में खास महत्व है। इसको लेकर हिंदुओं में कई तरह की मान्यताएं हैं। हिंदू धर्म को मानने वाले इस बात में यकीन रखते हैं कि उन्हें पितृपक्ष के समय दाढ़ी-बाल नहीं कटवाने चाहिए। पितृ पक्ष के दिन लोग अपने पितरों के लिए तर्पण, पिंडदान और श्राद्ध करते हैं। ये सब इसलिए किया जाता है ताकि उनके पूर्वजों की आत्मा को शांति मिल सके। हर साल की तरह इस साल भी पितृ पक्ष की शुरुआत होने वाली है और लोग इन दिनों में अपने पितरों का श्राद्ध करते हैं। इस साल पितृ पक्ष की शुरुआत 20 सितंबर से होने जा रही है और इनका समापन 6 अक्टूबर के दिन होगा यानी इन 17 दिनों तक आप अपने पूर्वजों का श्राद्ध और बाकी चीजे विधि पूर्वक कर सकते हैं
हमारे शास्त्रों में श्राद्धकर्ता एवं श्राद्धभोक्ता के लिए अनुकरणीय नियम का उल्लेख मिलता है। जैसे- श्राद्धकर्ता को श्राद्ध वाले दिन बाल कटवाना, दाढ़ी बनाना, तेल मालिश करने का निषेध है। श्राद्धकर्ता को श्राद्धवाले दिन ये सब कार्य नहीं करने चाहिए। श्राद्धकर्ता को श्राद्ध वाले दिन पूर्ण ब्रह्मचर्य का पालन करना चाहिए और स्त्री-संसर्ग नहीं करना चाहिए। वहीं श्राद्धकर्ता को श्राद्ध वाले दिन किसी अन्य व्यक्ति के घर या अन्य स्थान पर भोजन नहीं करना चाहिए। श्राद्धकर्ता को श्राद्ध वाले दिन किसी से दान या भेंट स्वीकार नहीं करना चाहिए। इसके साथ हीश्राद्धकर्ता को श्राद्ध वाले दिन ब्राह्मण भोजन के उपरांत ही भोजन ग्रहण करना चाहिए।
इसको लेकर ये सवाल हमेशा से पूछा जाता है कि क्या पितृपक्ष में दाढ़ी व बाल कटवाने से पूर्वजों की आत्माओं को कष्ट मिलता है? इस सवाल को लेकर आध्यात्मिक गुरुओं का कहना है कि पितृपक्ष में बाल कटवाने ना कटवाने का कोई आधार प्राचीन ग्रंथों में नहीं मिलता है। ये सुनी सुनाई दंत कथाओं या किसी के अनुभव से प्रेरित होकर बाद में प्रचलित परंपराओं पर आधारित है। इनका कोई सुदृढ़ आधार नहीं है।
क्या श्राद्ध सिर्फ पितृपक्ष में ही हो सकता है? लोगों के मन में एक सवाल भी हमेशा रहता है कि क्या श्राद्ध कर्म हम सिर्फ पितृपक्ष में ही कर सकते हैं या किसी और दिनों में भी इसको किया जा सकता है। इसको लेकर भी ज्योतिषों का कहना है कि हमारी परंपराओं और प्राचीन ग्रंथों में पितृपक्ष के अलावा भी श्राद्ध का उल्लेख प्राप्त होता है। धर्मसिंधु में श्राद्ध के लिए सिर्फ पितृपक्ष ही नहीं, बल्कि 96 कालखंड का विवरण प्राप्त होता है, जो इस प्रकार है- वर्ष की 12 अमावस्याएं, 4 पुणादि तिथियां, 14 मन्वादि तिथियां, 12 संक्रांतियां, 12 वैधृति योग, 12 व्यतिपात योग, 15 पितृपक्ष, 5 अष्टका, 5 अन्वष्टका और 5 पूर्वेद्यु:।
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